लड़के की ख़ुशी की कोई इन्तहा ना रही जब पांच दिनों की धांसू मान मन्नावल और EMOTIONAL अत्याचार के बाद लड़की उसके साथ डेट पर जाने के लिए राजी हुई! वैसे भी दिल्ली की उस सर्द सुबह में आकाश में चमचमाता सूरज दिल को रोमांटिक रोमांटिक करने के लिए काफी था. उफनते जज्बात और बहकते खयालातों के बीच मिलने की जगह तय हुई...पीवीआर साकेत..चमकती बदलती हुई दिल्ली में लड़के को अपने प्यार को थोडा URBAN URBAN टाइप का लुक देना था.. WAKE UP SID टाइप वाले रणबीर कपूर के माफिक CONVERSE के जूतों में सज के उसे फील गुड करना था.इसीलिए पीवीआर साकेत....!! लड़की बड़ी थी उससे... और MATURED भी...नयी नयी नौकरी लगी थी उसकी..!
पिछले पांच दिनों से काफी वर्क लोड था लड़की को..लड़का खफा खफा सा था उससे.. QUALITY टाइम जो नहीं मिला था उसको! ' नतीजतन पिछले पांच दिनों में उसे एहसास होने लगा था की जीवन सिर्फ प्यार व्यार तक ही सीमित नहीं है.. और दुनिया का सिस्टम उसकी सोच से ज्यादा COMPLICATED है..उसे एहसास होने लगा था की प्यार मुह्हबत भी एक टाइप का STATUS SYMBOL है..और भावनाओं में बहते हुए आदमी को देख दुनिया उसी तरह खिलखिलाती है जैसे कभी वह टॉम को जेरी के पीछे भागता देख मुसकता था।
अब कल रात की ही बात ले लो जब वह ऑटो में सर झुकाए हुए उस लड़की को याद करके अपने आंसू बहा रहा था,...ऑटो वाले भैया ने पैसे देते वक़्त उसे ऐसी नजरूं से देखा था मानों कह रहे हो..'' एक और इश्क में कुर्बान टाइप का लौंडा माँ बाप की गाढ़ी कमाई दिल्ली आ के फूंक रहा है, साले सब के सब दिल्ली आ के पढने में उस्ताद हो न या हों आशिकी में राज कपूर बन ही जाते हैं'!
लड़के ने पिछली पांच रातों में पांच पैक WILLS फूंक डाली थी, सिर्फ इसलिए की उसे लगता चुका था की वैश्वीकरण के इस दौर में प्यार भी RECESSION की चपेट में आ चूका है..और उसका गुस्सा सिर्फ उसकी माशूका के प्रति नहीं था बल्कि उस बैंक के लिए भी था जहाँ वो काम करती थी, जिसने उसके QUALITY टाइम भरे बाजार में कतल किया था,सेल्स और सर्विस की इस अंधी आपाधापी में उसके छायावादी प्यार का मार्केट के यथार्थवाद ने गला घोंट कर रख दिया था. बेचारा किसको समझाता, उस लड़की को जो हज़ार मील दूर से अपना घर बार छोड़ कर सिर्फ इसी जॉब को करने आई थी, जिसके घर में उसे इस MULTINATIONAL BANK में PLACED होने की ख़ुशी में चार दिन तक मिठाई बाटी गयी थी, किसको समझाता कि उसके व्यक्तिगत संबंधों का गला घोंटा गया था! जनता पागल ही समझती उसको अगर अपने रहस्यवाद का रहस्योदघाटन करता वो!
वो लड़का अपनी जान के इठला कर 'हमें तंग ना करो' कहने के अंदाज़ पे फिदा था.. आप सब ने अगर आशिकी की होगी(टाइम पास से एक लेवल ऊपर वाली) तो आप इस फ़िदा होने कि इंटेंसिटी को भली भांति पहचान सकते होंगे...गलत क्या है इसमें? हर कोई फ़िदा होता है..भले ही फ़िदा होने की वजह भारत के विभिन्न प्रान्तों के LITERACY लेवेल्स की तरह विविध हो सकती है, पर फ़िदा होने की प्रोबब्लिटी उतनी ही है जितनी इंडिया के किसी भी कोने में एक CORRUPT बाबुसाहब को पाने की है!! हाँ..तो लड़के के दिल में गुदगुदी सी हो उठती थी जब लड़की उससे इस ठेट बिहारी अंदाज़ में बतियाती थी..पर बेडा गर्क हो इस दिल्ली की YO DUDE वाली MULTINATIONAL संस्कृति का, कि JUNCTION पर उतारते के साथ ही यह 'हम' कब मैं में बदल गया लड़के को इसकी हवा तक नहीं लगी. फ़ोन पर बात ख़तम करते वक़्त 'रखते हैं' कब 'सी या, टेक केयर, बाय '' में बदल गया और कब लड़की का बेब्सीकरण हो गया, लड़के को पता भी ना चला..!!
हमारा लड़का कुछ विचारशील मिजाज़ का था, ग़ालिब, जैनेन्द्र,दुष्यंत, रेनू, दांते, फैज़, जैसे फरिश्तों से रु-ब-रु हो चूका था, और विचारशील होना बाज़ार का REQUIREMENT अब नहीं रह चूका है, इस बात को मान लेना हमारे INTELLECTUAL बंधुओं के लिए थोडा मुश्किल जरूर हो सकता है पर गुडगाँव कि बहुमंजिली इमारतों में जहाँ NSE, SENSEX, और DOW JONES जैसे अल्फाज़ बेतरह गुंजतें हैं, लंच ब्रेक में एक आध लोग चेतन भगत को याद कर लेते हैं यही बहुत है, रही बात ग़ालिब कि तो बेचारे गुलज़ार साहेब की बीडी के धुंए में ढकें से ग़ालिब को अब गुमनामी की जिंदगी बसर करनी पड़ती है!
बेचारी लड़की पक जाती थी जब वो लड़का उसे ग़ालिब क़ी लम्बी लम्बी शायरी SMS किया करता था..पूरी शायरी पढ़ के भी SUMMARY समझ नहीं पाती थी बेचारी, और बेचारी पढ़ती भी क्या, उर्दू भी ऐसी थी क़ी कहर ढा के ही छोडे!
इधर लड़का बेचारा अपनी ग़ालिब और दिनकर वाली दुनिया में अपनी उर्वशी का पान करने का दिवा स्वप्न देखता तो उधर लड़की SAVING ACCOUNTS के खतों में अपना सर खपाती!
इन पांच दिनों में लड़के को एहसास हो गया था क़ी वो परफेक्ट MISMATCH का शिकार हो चूका था,कि प्यार मुहब्बत भी ARCHIES, और VODAFONE के बदलते CALL रेट्स के इशारों पर नाचने वाली बसंती का नाम है!!
फूंकते फूंकते उसे लगा कि उसके दर्द का ज़िम्मेदार मनमोहन सिंह जी हैं, न वो होते और ना बाज़ार यों सुलगता और ना ही प्यार छायावादियों के पाले से भाग पूंजीवादियों के इशारों पर दौड़ता! प्रेम अब तक उसके लिए सामीप्य जनित भावनात्मक उपद्रव था, पर उन पांच दिनों ने उसे सिखाया था कि इस SHINING INDIA में प्यार MC DONALDS के बर्गर के WRAPPER में ढँक कर आता है! रात को २.३० बजे उसने इस नयी आर्थिक नीति कि जम कर माँ-बहिन की! रूम मेट बेचारा यही पूछते पूछते परेशां हो गया कि 'भाई बता तो गलिया किसको रहा है तू?' आधे घंटे भारत भर की माँ बहिन की गालियों के धारा प्रवाह संबोधन के बाद लड़का ने अपने रूम मेट से पूछा'भाई, तुझे इस मार्केट पर गुस्सा नहीं आता क्या, खुश कैसे है तू अपनी वाली के साथ, तब जबकि प्यार मुहब्बत के मायने ही बदल कर रख दिया है इन सालों ने, 'THESE BLOODY CAPITALISTS'! उसका रूम मेट पल भर के लिए उसे देखता ही रह गया, फिर डर गया बेचारा,'बोला भाई तू गुस्से में पागल क्यूँ होता है, सुबह तक भाभी मन जाएंगी,chill यार'!
लड़का हंसने लगा, आधे घंटे बाद पता नहीं कहाँ से सुधीर मिश्रा की 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी' उठा कर ले आया, फिर फूंकते फूंकते पूरी पिक्चर देख डाली, और सुबह हुई तो लड़का खुद को मार्क्सवादी टाइप का फील करने लगा! उसे लगने लगा की प्रेम एक निहायती संकुचित अवधारणा है जो कमज़ोर दिल वाले करते हैं, उसे लगा की संवेदनशील होना जैसे एक गुनाह है, और फलां फलां ऐसे कितने खतरनाक टाइप के ख्याल उसके दिमाग में आने लगे!
लडक के कॉलेज में ,मार्क्सिस्ट होना fashionable किस्म की hobby थी,..लम्बा कुरता पहनने का, लम्बे बाल-बढ़ी दाढ़ी रखने का, कैंटीन में cigarette जलाने का
लाइसेंस भर था मार्क्सवाद, उस लड़के के लिए! कभी कभी उसे मार्क्सवादी बनने का मन करता था,पर आज सुबह से दिल का रोब ही कुछ नया था .
लड़के ने सोचा इंडिया में डेमोक्रेसी सिर्फ नाम के लिए है, socialist state की बात करते है, कहाँ है उसका प्यार वाला socialism, जब मार्केट ने उसके प्रेम का ही अवमूल्यन कर दिया तो गरीबों का क्या हश्र किया होगा उसने..!
उसने अगले ही घंटे चे गुइविरा वाली शर्ट खरीद ली, और अपना पूरा मन बना लिया, भांड में गया मेरा प्यार सोच लिया उसने, पर मार्केट इतनी आसानी से एक और कॉमरेड कहाँ पैदा होने देता है! कुछ ही मिनटों में उसके फ़ोन रहमान साहब के नए tune में बज उठा!
उस तरफ से मैडम g फ्री हो के उसे quality टाइम देने के मूड में थी आज! लड़के ने पल भर को सोचा की फ़ोन पर ही चीख के कह दूँ की मर गया तुम्हारा जानूं, आज से मैं एक कॉमरेड हूँ, पर फिर सोचा की यह कुछ ज्यादा rude हो जाएगा!
अगले ही पल उसने अपने ब्रेक up प्रकरण का स्थल भी निर्धारित कर लिया! पीवीआर साकेत! 'चलो आज एक आखिरी मूवी देखते देखते ही इस छुद्र सांसारिक प्रेम रूपी बंधन से निजात पा लूँगा, और उसे अपने जीवन के वृहेत्तर लक्ष्य से भी परिचित करा दूंगा!' लड़के ने शुद्ध हिंदी में सोचा!
बस फिर क्या था, मेट्रो की उफनती भीड़ के तले, पीसता-पिसाता, बगल वाले अंकल के सर के बालों को गिनता, लड़का जा पहुंचा अपनी मंजिल तक!
साउथ डेल्ही की दुनिया ही अलग है, वहां पैसा सड़कों पर गमकता है,और ऐश-ओ-आराम हर एक आते जाते मर्सिडीज़ की अगली सीट पर बैठे पप्पी के गुलाबी पट्टे में झलकता है।
लड़के को बड़ी कोफ़्त हुई पूंजीवाद के इस नंगे नाच को देख कर, मन किया की अभी चला जाये वहां से, पर सोचा 'एक आखिरी मुलाकात कर लेता हूँ, मानवता के लिए, उस व्यक्तित्व के लिए जिसका कभी मैं आसक्त था'!
लड़की ने उसे देखा तोह मुस्कुराने लगी, लड़का फिर भी चुप रहा!
'बहुत busy हो गयी हो ना तुम?'
हाँ, बहुत काम करते हैं साले!
लड़का चुप रहा.
कल मैंने नक्सलवाद पर सोचा है!
लड़की चुप रही!
levi's में 30% off हैं चलें?" लड़की ने औपचारिक आदेश दिया!
लड़का चुप चाप उसके पीछे घूमता रहा, उसने सोचा पिक्चर हॉल के अन्दर कह दूंगा!
पिक्चर शुरू हुई!
शीला नाचने भी लगी, लड़के ने मन ही मन फराह खान को हज़ारों गालियाँ डालीं..!
बाज़ार की कठपुतली!
अचानक लड़की ने अँधेरे में उसका हाथ थम लिया, आगे पीछे कि सीट पर कोई ना था...,!
दो तीन और जोड़े थे, बस फर्क सिर्फ इतना था कि उनमे से कोई, इस लड़के के अलावे कॉमरेड नहीं था.
कुछ ही देर में लड़की हमारे कॉमरेड साहेब की दाढ़ी से खेल रही थी, मार्क्सवाद पिघलता सा लगा लड़के को.
लड़की के हाथ अब लड़के कि छाती पर फिसल रहे थे, ठीक एवाहं जहाँ उस लड़के कि शर्ट पर CHE GUIVERRA सिगार पते हुए मुस्का रहे थे.
लड़के ने हाथ झटकने कि कोशिश भर कि, और सोचा कि कह दूँ कि यह चोंचले अब काम नहीं आने वाले, पर चुप रहा.
लड़की मुस्कुराती रही, मार्क्सवादी कॉमरेड शर्माता रहा,
लड़की इठलाती रही और लड़के को लगा जैसे, फराह, शीला, वो लड़की, मनमोहन, सुधीर मिश्र, CHE GUIVERAA , और सब ...सारा बाज़ार उसपर हंस रहा है, मनो कह रहा है, 'देखो इस एक दिन के कॉमरेड को'!
लड़का शर्माता रहा, और उसके भीतर का कॉमरेड लड़की के होठों कि गर्मी से पिघल ना जाने कब उस बंद हॉल के गलियारों से हो कर बह गया उसे पता भी नही चला.!
इंटरवल के बाद, हमारा इंटरवल के पहले वाला कॉमरेड, फिर से वही पुराना, अपनी जानूं का प्यारा 'शोना' बन कर सलमान को आदाब अर्ज़ करते हुए देख रहा था...और साउथ दिल्ली उसपर ठाठ से हंस रही थी!!!!!!!
पिछले पांच दिनों से काफी वर्क लोड था लड़की को..लड़का खफा खफा सा था उससे.. QUALITY टाइम जो नहीं मिला था उसको! ' नतीजतन पिछले पांच दिनों में उसे एहसास होने लगा था की जीवन सिर्फ प्यार व्यार तक ही सीमित नहीं है.. और दुनिया का सिस्टम उसकी सोच से ज्यादा COMPLICATED है..उसे एहसास होने लगा था की प्यार मुह्हबत भी एक टाइप का STATUS SYMBOL है..और भावनाओं में बहते हुए आदमी को देख दुनिया उसी तरह खिलखिलाती है जैसे कभी वह टॉम को जेरी के पीछे भागता देख मुसकता था।
अब कल रात की ही बात ले लो जब वह ऑटो में सर झुकाए हुए उस लड़की को याद करके अपने आंसू बहा रहा था,...ऑटो वाले भैया ने पैसे देते वक़्त उसे ऐसी नजरूं से देखा था मानों कह रहे हो..'' एक और इश्क में कुर्बान टाइप का लौंडा माँ बाप की गाढ़ी कमाई दिल्ली आ के फूंक रहा है, साले सब के सब दिल्ली आ के पढने में उस्ताद हो न या हों आशिकी में राज कपूर बन ही जाते हैं'!
लड़के ने पिछली पांच रातों में पांच पैक WILLS फूंक डाली थी, सिर्फ इसलिए की उसे लगता चुका था की वैश्वीकरण के इस दौर में प्यार भी RECESSION की चपेट में आ चूका है..और उसका गुस्सा सिर्फ उसकी माशूका के प्रति नहीं था बल्कि उस बैंक के लिए भी था जहाँ वो काम करती थी, जिसने उसके QUALITY टाइम भरे बाजार में कतल किया था,सेल्स और सर्विस की इस अंधी आपाधापी में उसके छायावादी प्यार का मार्केट के यथार्थवाद ने गला घोंट कर रख दिया था. बेचारा किसको समझाता, उस लड़की को जो हज़ार मील दूर से अपना घर बार छोड़ कर सिर्फ इसी जॉब को करने आई थी, जिसके घर में उसे इस MULTINATIONAL BANK में PLACED होने की ख़ुशी में चार दिन तक मिठाई बाटी गयी थी, किसको समझाता कि उसके व्यक्तिगत संबंधों का गला घोंटा गया था! जनता पागल ही समझती उसको अगर अपने रहस्यवाद का रहस्योदघाटन करता वो!
वो लड़का अपनी जान के इठला कर 'हमें तंग ना करो' कहने के अंदाज़ पे फिदा था.. आप सब ने अगर आशिकी की होगी(टाइम पास से एक लेवल ऊपर वाली) तो आप इस फ़िदा होने कि इंटेंसिटी को भली भांति पहचान सकते होंगे...गलत क्या है इसमें? हर कोई फ़िदा होता है..भले ही फ़िदा होने की वजह भारत के विभिन्न प्रान्तों के LITERACY लेवेल्स की तरह विविध हो सकती है, पर फ़िदा होने की प्रोबब्लिटी उतनी ही है जितनी इंडिया के किसी भी कोने में एक CORRUPT बाबुसाहब को पाने की है!! हाँ..तो लड़के के दिल में गुदगुदी सी हो उठती थी जब लड़की उससे इस ठेट बिहारी अंदाज़ में बतियाती थी..पर बेडा गर्क हो इस दिल्ली की YO DUDE वाली MULTINATIONAL संस्कृति का, कि JUNCTION पर उतारते के साथ ही यह 'हम' कब मैं में बदल गया लड़के को इसकी हवा तक नहीं लगी. फ़ोन पर बात ख़तम करते वक़्त 'रखते हैं' कब 'सी या, टेक केयर, बाय '' में बदल गया और कब लड़की का बेब्सीकरण हो गया, लड़के को पता भी ना चला..!!
हमारा लड़का कुछ विचारशील मिजाज़ का था, ग़ालिब, जैनेन्द्र,दुष्यंत, रेनू, दांते, फैज़, जैसे फरिश्तों से रु-ब-रु हो चूका था, और विचारशील होना बाज़ार का REQUIREMENT अब नहीं रह चूका है, इस बात को मान लेना हमारे INTELLECTUAL बंधुओं के लिए थोडा मुश्किल जरूर हो सकता है पर गुडगाँव कि बहुमंजिली इमारतों में जहाँ NSE, SENSEX, और DOW JONES जैसे अल्फाज़ बेतरह गुंजतें हैं, लंच ब्रेक में एक आध लोग चेतन भगत को याद कर लेते हैं यही बहुत है, रही बात ग़ालिब कि तो बेचारे गुलज़ार साहेब की बीडी के धुंए में ढकें से ग़ालिब को अब गुमनामी की जिंदगी बसर करनी पड़ती है!
बेचारी लड़की पक जाती थी जब वो लड़का उसे ग़ालिब क़ी लम्बी लम्बी शायरी SMS किया करता था..पूरी शायरी पढ़ के भी SUMMARY समझ नहीं पाती थी बेचारी, और बेचारी पढ़ती भी क्या, उर्दू भी ऐसी थी क़ी कहर ढा के ही छोडे!
इधर लड़का बेचारा अपनी ग़ालिब और दिनकर वाली दुनिया में अपनी उर्वशी का पान करने का दिवा स्वप्न देखता तो उधर लड़की SAVING ACCOUNTS के खतों में अपना सर खपाती!
इन पांच दिनों में लड़के को एहसास हो गया था क़ी वो परफेक्ट MISMATCH का शिकार हो चूका था,कि प्यार मुहब्बत भी ARCHIES, और VODAFONE के बदलते CALL रेट्स के इशारों पर नाचने वाली बसंती का नाम है!!
फूंकते फूंकते उसे लगा कि उसके दर्द का ज़िम्मेदार मनमोहन सिंह जी हैं, न वो होते और ना बाज़ार यों सुलगता और ना ही प्यार छायावादियों के पाले से भाग पूंजीवादियों के इशारों पर दौड़ता! प्रेम अब तक उसके लिए सामीप्य जनित भावनात्मक उपद्रव था, पर उन पांच दिनों ने उसे सिखाया था कि इस SHINING INDIA में प्यार MC DONALDS के बर्गर के WRAPPER में ढँक कर आता है! रात को २.३० बजे उसने इस नयी आर्थिक नीति कि जम कर माँ-बहिन की! रूम मेट बेचारा यही पूछते पूछते परेशां हो गया कि 'भाई बता तो गलिया किसको रहा है तू?' आधे घंटे भारत भर की माँ बहिन की गालियों के धारा प्रवाह संबोधन के बाद लड़का ने अपने रूम मेट से पूछा'भाई, तुझे इस मार्केट पर गुस्सा नहीं आता क्या, खुश कैसे है तू अपनी वाली के साथ, तब जबकि प्यार मुहब्बत के मायने ही बदल कर रख दिया है इन सालों ने, 'THESE BLOODY CAPITALISTS'! उसका रूम मेट पल भर के लिए उसे देखता ही रह गया, फिर डर गया बेचारा,'बोला भाई तू गुस्से में पागल क्यूँ होता है, सुबह तक भाभी मन जाएंगी,chill यार'!
लड़का हंसने लगा, आधे घंटे बाद पता नहीं कहाँ से सुधीर मिश्रा की 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी' उठा कर ले आया, फिर फूंकते फूंकते पूरी पिक्चर देख डाली, और सुबह हुई तो लड़का खुद को मार्क्सवादी टाइप का फील करने लगा! उसे लगने लगा की प्रेम एक निहायती संकुचित अवधारणा है जो कमज़ोर दिल वाले करते हैं, उसे लगा की संवेदनशील होना जैसे एक गुनाह है, और फलां फलां ऐसे कितने खतरनाक टाइप के ख्याल उसके दिमाग में आने लगे!
लडक के कॉलेज में ,मार्क्सिस्ट होना fashionable किस्म की hobby थी,..लम्बा कुरता पहनने का, लम्बे बाल-बढ़ी दाढ़ी रखने का, कैंटीन में cigarette जलाने का
लाइसेंस भर था मार्क्सवाद, उस लड़के के लिए! कभी कभी उसे मार्क्सवादी बनने का मन करता था,पर आज सुबह से दिल का रोब ही कुछ नया था .
लड़के ने सोचा इंडिया में डेमोक्रेसी सिर्फ नाम के लिए है, socialist state की बात करते है, कहाँ है उसका प्यार वाला socialism, जब मार्केट ने उसके प्रेम का ही अवमूल्यन कर दिया तो गरीबों का क्या हश्र किया होगा उसने..!
उसने अगले ही घंटे चे गुइविरा वाली शर्ट खरीद ली, और अपना पूरा मन बना लिया, भांड में गया मेरा प्यार सोच लिया उसने, पर मार्केट इतनी आसानी से एक और कॉमरेड कहाँ पैदा होने देता है! कुछ ही मिनटों में उसके फ़ोन रहमान साहब के नए tune में बज उठा!
उस तरफ से मैडम g फ्री हो के उसे quality टाइम देने के मूड में थी आज! लड़के ने पल भर को सोचा की फ़ोन पर ही चीख के कह दूँ की मर गया तुम्हारा जानूं, आज से मैं एक कॉमरेड हूँ, पर फिर सोचा की यह कुछ ज्यादा rude हो जाएगा!
अगले ही पल उसने अपने ब्रेक up प्रकरण का स्थल भी निर्धारित कर लिया! पीवीआर साकेत! 'चलो आज एक आखिरी मूवी देखते देखते ही इस छुद्र सांसारिक प्रेम रूपी बंधन से निजात पा लूँगा, और उसे अपने जीवन के वृहेत्तर लक्ष्य से भी परिचित करा दूंगा!' लड़के ने शुद्ध हिंदी में सोचा!
बस फिर क्या था, मेट्रो की उफनती भीड़ के तले, पीसता-पिसाता, बगल वाले अंकल के सर के बालों को गिनता, लड़का जा पहुंचा अपनी मंजिल तक!
साउथ डेल्ही की दुनिया ही अलग है, वहां पैसा सड़कों पर गमकता है,और ऐश-ओ-आराम हर एक आते जाते मर्सिडीज़ की अगली सीट पर बैठे पप्पी के गुलाबी पट्टे में झलकता है।
लड़के को बड़ी कोफ़्त हुई पूंजीवाद के इस नंगे नाच को देख कर, मन किया की अभी चला जाये वहां से, पर सोचा 'एक आखिरी मुलाकात कर लेता हूँ, मानवता के लिए, उस व्यक्तित्व के लिए जिसका कभी मैं आसक्त था'!
लड़की ने उसे देखा तोह मुस्कुराने लगी, लड़का फिर भी चुप रहा!
'बहुत busy हो गयी हो ना तुम?'
हाँ, बहुत काम करते हैं साले!
लड़का चुप रहा.
कल मैंने नक्सलवाद पर सोचा है!
लड़की चुप रही!
levi's में 30% off हैं चलें?" लड़की ने औपचारिक आदेश दिया!
लड़का चुप चाप उसके पीछे घूमता रहा, उसने सोचा पिक्चर हॉल के अन्दर कह दूंगा!
पिक्चर शुरू हुई!
शीला नाचने भी लगी, लड़के ने मन ही मन फराह खान को हज़ारों गालियाँ डालीं..!
बाज़ार की कठपुतली!
अचानक लड़की ने अँधेरे में उसका हाथ थम लिया, आगे पीछे कि सीट पर कोई ना था...,!
दो तीन और जोड़े थे, बस फर्क सिर्फ इतना था कि उनमे से कोई, इस लड़के के अलावे कॉमरेड नहीं था.
कुछ ही देर में लड़की हमारे कॉमरेड साहेब की दाढ़ी से खेल रही थी, मार्क्सवाद पिघलता सा लगा लड़के को.
लड़की के हाथ अब लड़के कि छाती पर फिसल रहे थे, ठीक एवाहं जहाँ उस लड़के कि शर्ट पर CHE GUIVERRA सिगार पते हुए मुस्का रहे थे.
लड़के ने हाथ झटकने कि कोशिश भर कि, और सोचा कि कह दूँ कि यह चोंचले अब काम नहीं आने वाले, पर चुप रहा.
लड़की मुस्कुराती रही, मार्क्सवादी कॉमरेड शर्माता रहा,
लड़की इठलाती रही और लड़के को लगा जैसे, फराह, शीला, वो लड़की, मनमोहन, सुधीर मिश्र, CHE GUIVERAA , और सब ...सारा बाज़ार उसपर हंस रहा है, मनो कह रहा है, 'देखो इस एक दिन के कॉमरेड को'!
लड़का शर्माता रहा, और उसके भीतर का कॉमरेड लड़की के होठों कि गर्मी से पिघल ना जाने कब उस बंद हॉल के गलियारों से हो कर बह गया उसे पता भी नही चला.!
इंटरवल के बाद, हमारा इंटरवल के पहले वाला कॉमरेड, फिर से वही पुराना, अपनी जानूं का प्यारा 'शोना' बन कर सलमान को आदाब अर्ज़ करते हुए देख रहा था...और साउथ दिल्ली उसपर ठाठ से हंस रही थी!!!!!!!

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