Saturday, February 9, 2013

एक मोबाइल की छुट्टी!


दिल्ली के पूरब में आसमान पर धुंध और अँधेरा लिपटे सो रहे थे। चाँद,तारे और सूरज अपनी छुट्टी का लुत्फ़ उठा रहे थे। जनवरी का सूरज ऐसे भी डंडीमार होता है, नाकारा! ऐसे में बिजली के उलझते तारों, नारंगी रौशनी उगलते लैंप-पोस्ट जिन पर सधन्यवाद मोहल्ले के माननीय विधायक का नाम चस्पा था, छोले-कुलचे के वीरान से ठेलों, और पिछली शाम के जूठे ठोंगों को अभी-अभी चाट कर लेटे कुत्ते के अलावा, उस गली के चौथे मकान के पहले कमरे में एक मोबाइल, एक लड़की और उसका भाई जगे पड़े थे। मेट्रो के खम्बों ने दिन भर बदस्तूर थरथराने के बाद अभी कुछ ही घंटे पहले सांस ली थी, पास वाले मस्जिद की मीनार से टंगे हुए भोंपू की नींद ख़त्म होने में अब बस कुछ ही पल बाकी थे।

लड़की 25 की थी, पर फिर भी रजाई से उसके पैर रह रह कर बाहर आ जाते थे। उसका एक हाथ मोबाइल को पकडे कान से चिपका हुआ था, लिहाज़ा वो अपने दुसरे हाथ से ही रजाई खींच लेती थी। तकिये के बगल में उसकी किताब पड़ी थी- पिछले तीन घंटे से मुड़ी-तुड़ी सी। बीच-बीच में लड़के को अपनी बहन की फुसफुसाती आवाज़ के अलावा दूर रिंग-रोड पर दौड़ती दिल्ली पुलिस की पी सी आर वैन के भोंपू की आवाज़ सुनाई पड़ती थी। ' काश मेरी दीदी लता मंगेशकर जैसा बोलती और पी सी आर के साईरन की आवाज़ आई पी एल वाले साउंड-ट्रैक जैसी होती,'' ऐसा सोचता वो लड़का फिर से हिब्रू जैसे दिखने वाले गणितीय बकवास को एकटक निहारने लगता। वो बस दो महीने पहले ही अपनी दीदी के पास आया था - गोरखपुर से दिल्ली बहुत अलग लगती थी उसे। किसी सुन्दर पर डरावनी चुड़ैल जैसी दिल्ली!

बहरहाल रजाई से कश्म-ऐ-काश करती वो लड़की रह रह के मोबाइल को चुम्मे दे रही थी- मीलों दूर कलकत्ते के किसी मल्टी -नेशनल प्रतिष्ठान के चौथे तल्ले में अपने दडबे जैसे कार्य-स्थल पर दिन भर की मानसिक प्रताड़ना झेल कर लौटा उसका होने वाला पति अब प्यार नाम का क्लोरोफोर्म ले रहा था! रजाई के भीतर, उस लड़की के कानों से चिपक कर अभियांत्रिकी अब पूरी तरह से मानवीय हो चली थी। उस हथेली भर के मोबाइल फ़ोन में तमाम फंतासियाँ हिलोरे मार रही थीं, सपने उसकी स्क्रीन पर उस लड़की के होठों के चिन्ह की शक्ल में उग रहे थे, सवाल जवाब बन कर पूर्वी दिल्ली के इस धंसे हुए मोहल्ले के कमरे से उत्तरी कलकत्ता के उस और भी ज्यादा धंसे मोहल्ले के कमरे तक आ जा रहे थे। वे पिछले छह महीनो से वाया मोबाइल इश्क फरमा रहे थे। मोबाइल था की बातों की लड़ियों में उलझ कर बदरंग होता जा रहा था, की -पैड को अपने श्वेत से श्याम हो जाने का रंज तो था पर उसके पास खुश होने की वजह भी थी- क्यूंकि लड़की की उँगलियों ने पिछले कई महीनो से सबसे ज्यादा उसे ही छेड़ा था।

इन छह महीनो में कुछ और गतिविधियाँ भी हुई थी। लड़के ने अपनी पिछली माशूका को आखिरी बार सिनेमा घर में करण जौहर का रोमांस दिखाते हुए, इम्तिआज़ अली वाले स्टाइल में ब्रेक अप करते हुए,यह बता दिया था की जिंदगी, दरअसल अनुराग कश्यप की फिल्मों जैसी है, वही फ़िल्में जिन्हें वो आज तक बोरिंग कह कर गाली देती आई है। पिछले महीने ही लड़के ने जिम जाना शुरू किया था। ये ठीक है की सिक्स पैक के पीछे जहाँ दिल धडकता है वहां उसे एक पत्थर रखना पड़ा था क्यूंकि जिम की फीस उसके पतलून के पीछे अच्छा खासा सुराख़ कर रही थी, पर ख़ास दोस्तों की ख़ास सलाह को वो ठुकरा न सका।

इधर हजार मील दूर दिल्ली में भी बीते छह महीनों में लड़की ने तमाम किस्म की गतिविधियों को अंजाम दे डाला था - उसके बाल अब और ज्यादा सीधे हो गए थे, आगे की कुछ लटें खतरनाक किस्म के भूरे रंग में रंग गयी थी, उसने इन बीते महीनो में 6 बार अपना नंबर बदल डाला था और वोडा से लेकर आईडिया तक सभी टेलीफोन कंपनियों को अपनी सेवा का बराबर अवसर दिया था, उसने दिल पर पत्थर रख कर छोले-कुचले के ठेलों से अनचाही दुश्मनी मोल उनको अलविदा कह दिया था और अभी कल ही छुपती-छुपाती अपनी सहेली के साथ जा कर ''सुडोल'' नाम का क्रीम खरीद कर आई थी। इन सब के बीच वो पिछले दिसम्बर की उस ठंडी शाम को दामिनी के लिए इंडिया गेट पर चीख कर भी आई थी- आह, कितना रोई थी ये लड़की जब वो सिंगापुर में मरी थी, उस रात कलकत्ता भी बात नहीं की थी इसने!

गतिविधियाँ अगर यही दम मार लेतीं तो मैं ये कहानी नहीं लिख रहा होता। रात के इस पहर में जब वो अपने बेदम होते मोबाइल के छेद में बेरहमी से चार्जर का पिन धकेल रही थी, तो उसे एहसास था की उसके पिछले दो साल के दिल्ली प्रवास के दौरान की गयी छिटपुट खुदरी गलतियां अब भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही है। उसके मोबाइल पर किसी धडकते, शराब के नशे में मदहोश और जहरीले दिल की कॉल प्रतीक्षा में था। भजनपुरा के किसी बेहद संकरी गली के पीले मकान के चौथे तल्ले के अँधेरे कमरे से की गयी ये कॉल बेहद जिद्दी थी, ये वोडा से लेकर आईडिया तक हर नंबर पर आती है। पिछली रविवार को लड़की ने कलकत्ते को होल्ड पे रख कर भजनपुरा वाली कॉल को भर दम गलियाया था।

'' क्यों बे स्साले, बार बार फ़ोन कर के क्या उखाड़ लेगा तू, एक बार कहने से नहीं समझ में आता क्या बे?'' साल भर पहले मेट्रो में उससे मिलना अब इस लड़की के लिए दुश्वारी बन गया था। वो हर दुसरे दिल्ली के लड़के की ही तरह था - खड़े बाल, चुस्त पतलून,पालिका से ख़रीदे हुए चमकदार जूते, गोगल्स और वही माचो-भैन्चो टाइप खिलंदरापन - मेट्रो में पहली बार उसको देख कर गोरखपुर की इस लड़की को भजनपुरा वाले लौंडे में अपना सलमान दिखने लगा था। अब ये अलग बात है की उस शाम जब, लोदी गार्डन में जब इस लड़के ने इरादतन झुरमुटों के पीछे जा कर बैठने की ख्वाहिश की, उस रात जब फ़ोन पर वो मांशाहरी चुटकुलों सुनाने की फरमाइश करने लगा और उस शाम जब उसने अगरवाल स्वीट्स पर आलू-टिक्की खाते हुए उसके साथ सोने की बात पर मन करने को लेकर उसे गली दी, तब ही जा कर इस लड़की को भजनपुरा वाले सलमान मियां के पीछे का शक्ति कूर नजर आया और तब से वो इससे भागती फिर रही है। जब से गोरखपुर में उसके शादी की बात चल रही थी, तब से ये भाग रही है।

आज फिर भजनपुरा की कॉल प्रतीक्षा पर थी । उसने आज फिर पी के उल्टियां की थी और अब अपने दोस्तों के साथ चारमिनार के धुंए को फांकता हुआ गुस्से, पागलपन और फ़िज़ूल की मर्दानगी से भरी गालियाँ बक रहा था।
आज फिर उसे लड़की को गालियाँ देने का मन था। आग को हवा देने के लिए वजीराबाद के कुरियर कंपनी में बतौर हेल्पर काम करने वाला उसका दोस्त, आजादपुर सब्जी मंडी में लौरी चलाने वाले तीन और दोस्त भजनपुरा आये थे । इन सब के बीच अच्छी बनती है क्यूंकि इन सब को दिलवाले का ''जीता था जिसके लिए'' वाला गाना सुनना बेहद पसंद है! वे नशे में धुत होने के बाद यही सुनते हैं। आज गलती से ''जीता हूँ'' वाला वर्शन बज गया। बजाने वाले को समेकित स्वर में ''भोंसड़ी के'' के तमगे से नवाज़ा गया। '' जीता था वाला वर्शन उन्हें पता नहीं क्यूँ बेहद पसंद था।

दारू पी कर उलटी करने के बाद लड़के का मूड अब फिर से रोमांटिक हो चला था । उसे उस लड़की को गाली देने और उससे गाली सुनने की आदत है।
''स्साली, कहाँ लगी पड़ी रहती है बे, किसको बर्बाद कर रही है चुड़ैल!'' वो बक रहा है।
'' कमीने, दुबारा फ़ोन मत करियो, साले गंवार, मुंह देखा है बे।'' लड़की भी चुप नहीं बैठेगी, वो दामिनी नहीं बनेगी। करियो -लडियो वाला लिंगो उसने दिल्ली से उधार लिया था!
लड़के के भीतर का मर्द दारू के साथ घुल कर अब खतरनाक हो चला था।
'' स्साली तेरे कमरे का रास्ता पता है मुझे, अभी उठा लूँगा।'' वो दहाड़ रहा था।
लड़की कहाँ पीछे रहने वाली थी। लिहाज़ा वो भी दहाड़ पड़ी - स्साले धमकी किसको देता है बे, एक बाप की औलाद है तो आ के दिखा।''

कह के उसने फ़ोन काट दिया। पास गूंजती पी सी आर वन की आवाज़ सुन उसे अचानक सब कुछ ठीक है जैसा लगा। पास में रखे बोतल से उसने दो घूँट पानी गटका।
कलकत्ता तब से प्रतीक्षा पर था।
''क्या हुआ शोना, कहाँ लगी थी। उसकी आवाज़ में घुल हुआ प्यार उसके भीतर के पुरुषवादी व्यंग्य को छुपा नहीं पा रहा था।
अरे, कहीं नहीं सब साले लोफर मवाली सब मेरे ही पल्ले पड़ते है।'' लड़की ने मसले पर इश्क की मिटटी डाल दी। अब वे फिर अपने हनीमून के गंतव्य स्थल के लिए लड़ रहे थे। मोबाइल बेचारा थक हुआ सा मुस्कुरा रहा था- उसे इन सब की आदत थी।

मेट्रो के खम्भों ने जम्हाई लेते हुए अभी काम्पना शुरू ही किया था, पी से आर की गाडी रिंग रोड से सटे ताजे खुले चाय की दूकान से जा कर सटी ही थी, इससे पहले की मस्जिद पे टेंगा भोंपू अपनी कौम की सेवा में लग पाता - पूर्वी दिल्ली के आसमान ने बिजलियों ने तारों की झालरों और लाल-पीले-नीले इंसानी दडबों के दरम्यान झांकते हुए एक खौफनाक नजारा देखा था। वो पांच थे जो दो भड-भड करती मोटरसाइकिल पर नशे में धुत भजनपुरा से इधर इस लड़की के घर के नीचे आये थे। कहते हैं की सुबह जब अखबार वाला उंघते हुए वहां से गुजरा था खुले दरवाजे से उसने दो लाशें पड़ी देखीं थीं। थोड़ी देर में वहां चीखते-चिल्लाते रिपोर्टरों की जमात जुट गयी थी, कहना मुश्किल था की वो लड़की की मौत से खफा थे या फिर इस तंग गली से जिसमें से हो कर उनके चैनल की गाड़ियों का घुस पान मुश्किल था। सत्य कथा और मनोहर कहानियों के युवा कहानीकार अपनी लपलपाती कलम के साथ वहां पहुँचने ही वाले थे। गली के मोड़ पर मट्ठी-चाय पीते कुछ सिपाही खड़े थे जो अपनी आज घर जा कर, आज अपनी बीवियों को अपनी लाडली पे '''नज़र'' रखने के लिए कहने वाले थे।
कमरे के भीतर लड़की की लाश रजाई पर गिरी थी उसके गले से अब खून रिस-रिस के काला पड़ने लगा था। लड़के ने जोर-आजमाइश की होगी लिहाज़ा वो भी मर गया था। गुलाबी दीवार से लटके रूपा वाले कैलेंडर के हनुमान जी पर खून के छींटे थे। और वहीँ कोने में अखबारों के गट्ठर के बीच दबी दामिनी की कहानी चुप चाप से सो रही थी। पास पड़ा मोबाइल कर्करदूमा ठाणे में किसी प्लास्टिक की थैली में पड़ा अब चैन की नींद सो रहा था - पिछले दो साल से वो सोया नहीं था। एक मोबाइल को छुट्टी मिल चुकी थी!
 

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