ताकि सभ्यता के दमन पर कस्बाई गन्दगी के छीटें न मिले !
दंगे हुए, लोग मरे, बेटियां लुटी, घर खाक हुए, लोग दफ़न हुए....हो जाने दो.
बस 'सभ्यता' चमकती रहे...हमारा इतिहास चमकता रहे...!!
सैंतालिस आया.........ट्रेन भर के लाल खून में सनी लाशें पहुंची...
'हम' 'भारत' के 'लोग' फिर भी कहाँ डिगे...राष्ट्रवाद वाले डिटोल से धो डाला सारे घावों को...
इतिहास पर सुनहले भारत के सपने वाली मरहम पट्टी कर दी...वो रोया..तो 'सत्ता' ने उसे पुचकारा और कहा बड़े बड़े मुल्कों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं...सेनोरिता!
फिर मुरादाबाद में इक मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के को प्यार हो गया, दोनों भाग गए...
पीछे छोड़ गए बवाल...दंगे हुए..लोग मरे...घर खाक हुए....लोग दफ़न हुए....
इतिहास फिर रोया...सत्ताधारी आये..लाशें देखीं....
वे आम लाशें थी..गरीबी की सड़ांध और बेबसी की मिचली से सनी हुई....
उनसे हमारे इतिहास को खतरा था...संक्रामक बिमारियों का...
हमने हिन्दू-मुस्लिम एकता वाले रुई के फाहे से इतिहास की पीठ पर धार्मिक सदभाव वाला डिटोल लगाया...
और फिर भाषणों की लोरी सुना दर्द से बिलबिलाते इतिहास को सुला दिया...!
नए साल की नयी सुबह पे हमारा इतिहास अब भी गौरवशाली था..!!
सत्ता ने इतिहास को सुला अभी साँस ली ही थी..कि मेरठ कटा...दिल्ली जली..भागलपुर सडा...मुंबई फूंकी...
फिर गोधरा आया...आसाम भी आया...!
हज़ारों लाशें सडती रही...लाखों घर बर्बाद होते रहे....इज्ज़तें बेईज्ज़त होती रहीं...!
सत्ता इनसे परेशां नहीं थी.....इनकी सड़ांध से परेशां थी...जो उसके सभ्यता और इतिहास के नाक में घर कर बैठी थी!!
सभ्यता को मिचली आ रही थी....इतिहास खौफज़दा हो काँप रहा था...
लिहाज़ा सत्ता ने हकीमों को फरमान भेजा...!
हाकिम आये...वे दिल्ली के साउथ और नोर्थ ब्लाक से आये थे... वे बड़े बड़े समाचार चैनलों के दफ्तर से आये थे...उनके पास बड़ी बड़ी डिगरियां थी... बड़े बड़े कैमरे थे...गाड़ियाँ भी थी!!
सत्ता बौखलाई हुई सी संसद के चक्कर कट रही थी.....हकीमों के आते ही उसने इलाज़ पूछा..!
'अमां रह रह के ये मुआ इतिहास बीमार पड़ जाता है....कोई पक्का नुस्खा इजाद करो यार'...सत्ता बोली!
हकीमों ने इतिहास को किताबों की मेज़ पर लिटाया...वो कांपता था..!
दंगों के दाग को धोने की तरकीब निकली गयी....'अपवाद', 'भूख' और 'गरीबी' जैसी वजहों वाला हैंडीप्लास्ट चिपकाया गया इतिहास के ज़ख्मों पर...!
उसे फिल्में दिखाई गयी....जिसमें सन्नी देओल इक मुसलमान अमीषा को पाने के लिए ग़दर मचा रहा था...
उसे अमन की आशा वाले नगमे सुनाये गए....जिसमे राहत भाई और आशा ताई थीं..!
रमजान की दावतों में 'गो माता' के दूध में मिली सेवैयाँ परोसी गयी....!
इतिहास को धर्म-निरपेक्षता वाले कम्बल में लपेटा गया......संविधान के तकिये पे सुलाया गया..!
वो अब नहीं कांप रहा था..!
सभ्यता को गाँधी मार्का इतर से नहाया गया...!
इतिहास के कमरे में सिन्धु घटी सभ्यता के कंगूरे टाँगे गए....
स्वर्ण काल की दूध-दही की नदियों वाले तस्वीर भी टंगी..
सभ्यता की देहलीज़ पर गाँधी-नेहरु ब्रांड की झालरियाँ लटकाई गयीं...
एक interior decorator आया..उसने 'theme india' सजाया...
पूरे कमरे की 'भारत' नाम के डिसटेम्पर से पुताई की.....
कोने में पड़े गरीब गन्दगी को बुहारा गया....लोकतंत्र नाम के झाड़ू से!
'अनेकता में एकता' टाइप मुहावरों की चिप्पियाँ सटी...
और सभ्यता फिर से चमकने लगी....इतिहास अब स्वास्थ्य-लाभ करने लगा था!!

JAMANA JHOOM KAR CHALTA ITIHASON KI IBADAT SE ISLIYE ITIHAS KA CHAMAKTE RAHNA JARURI HAI........KSHITIZ JI...
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